तकरीबन डेढ़ दशक पहले पाइपिंग और ड्रेनेज फिटिंग Solutions का मार्किट भी अन्य मर्किट्स की तरह अपनी दिशा भटक गया| इस दौरान इन्फीरियर क्वालिटी प्रोडक्ट्स ने प्राइस वार छेड़ दी जिसकी वजह से क्वालिटी प्रोडक्ट्स को सेकेंडरी मार्किट में अपने प्रॉफिट मार्जिन पर समझौता करना पड़ा| इस प्राइस वार की वजह से consumers को काफी फायदा हुआ, साथ ही साथ एक्सपर्ट्स, यानी की राज़, मिस्त्री और plumbers की भी चांदी हो गयी| सन 2000 का एक व्यक्तिगत अनुभव भी यहाँ शेयर करूँगा, इस दौरान Strategic Vision ने तकरीबन सभी लीडिंग पाइपिंग और ड्रेनेज फिटिंग ऑफर कर रही कम्पनीज को एप्रोच किया, मगर सभी ने एक स्टैण्डर्ड जवाब दिया, उनका कहना था की एडवरटाइजिंग में होने वाला खर्च वो सेकेंडरी बायर और कस्टमर के साथ शेयर करना चाहते हैं| ये प्राइस वार तकरीबन पांच साल तक चला और unorganized सेक्टर में कई ब्रांड कुकुरमुत्ते की तरह उगते चले गए|
महंगे दामो में Identity Crisis खरीदने का दौर शुरू हुआ
Kisan की स्पेलिंग अगर Kessan हो जाए तो भी भारत के रिमोट मैक्रो इंटीरियर में पाइप खरीद रहा खरीददार ये नहीं समझ पायेगा की उसने मुंडी वाले किसान का पाइप नहीं बल्कि किसी और डमी कंपनी का पाइप खरीदा है| स्पेलिंग में इस तरह के हेरफेर और रिटेलर की मिलीभगत को marketing के शब्दों में brand identity leak का नाम भी दिया जा सकता है| डेढ़ दशक पहले, ये Brand identity leak अपने चरम पर था| ऐसे वक्त में आर्गनाइज्ड मार्किट के प्लेयर्स को मार्किट की कुछ “ग्लैमर छाप” एडवरटाइजिंग कम्पनीज” ने सलाह दी की Celebrity Endorsement के ज़रिये इस स्तिथि से निबटा जा सकता है, बस फिर क्या था, सलमान खान, सैफ अली खान और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों के हाथ में प्लास्टिक के पाइप आ गए| अचानक हिंदी फिल्मो के सीन्स में भी पाइप नज़र आने लगे| सितारों को एंडोर्स करते समय कम्पनीज ये भूल गयी की उन्होंने महंगे दामो में अपने लिए एक नया आइडेंटिटी क्राइसिस भी खरीद लिया है| मसलन, अक्षय कुमार और सलमान खान को लेते हैं, पिछले दस सालो में उन्होंने पचास से ज्यादा विज्ञापन किये हैं, इनमें अंडरवियर, हवाई चप्पले और टेलकम पाउडर शामिल हैं| इन्ही दस सालो में सोशल मीडिया ने दोनों सितारों को सैकड़ो बार ट्रोल किया है जिसकी वजह से Fan Following के साथ साथ नफरत करने वालो की तादाद भी बढ़ी है|
सबसे बड़ी बात ये की अमूमन ब्रांडेड कम्पनीज जिस टारगेट ग्रुप को फोकस करती है उस ग्रुप में इनकी पहुँच संदेहजनक है| यहाँ पर अमिताभ बच्चन साहब का ज़िक्र भी ज़रूरी हो जाता है| उनकी रीच तो हर टारगेट ग्रुप में हैं मगर वो एडवरटाइजिंग की दुनिया में ओवर एक्सपोज्ड हो चुके हैं| मुद्दे की बात ये है की ओवर एक्सपोज्ड सेलिब्रिटीज और लगातार ट्रोल का शिकार हो रहे सेलिब्रिटीज ब्रांड को फायदा कम और नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं|
मेसेज ज़रूरी या मैसेंजर, ROI के पॉइंट ऑफ़ व्यू से सोचिये
अक्षय, सलमान और बच्चन साहब के द्वारा किये गए Commercials
में ट्रेड के लोगो तो दिलचस्पी हो सकती है, मगर
आम आदमी को इस तरह के ब्रांड एसोसिएशन से कोई फर्क नहीं पड़ता| एक ज़माना था जब
पामोलिव शेव क्रीम को कपिल देव की मर्दाना पर्सनालिटी से जोड़ा गया, वाकई ये सही था,
उससे भी ज़्यादा सटीक था कपिल देव को Rapidex English
Speaking course से जोड़ना, हरियाणा का एक जाट रातो रात फर्राटेदार अंग्रेजी में अंग्रेजो
से बात कर रहा था और Rapidex English Speaking course का प्रचार कर रहा था, इस positioning में एक किस्म का Realism
है, मगर CPVC pipes के बारे में ज्ञान बांटते सलमान, अक्षय और
अमिताभ ना तो दर्शकों के गले उतरे ना ही वो ब्रांड के लिए कोई अलग आइडेंटिटी पैदा
कर पाए, यानी देखा जाये तो इस मामले में Company का ROI जीरो भी काउंट किया गया जा सकता है|
आइये “ग्लैमर छाप” एडवरटाइजिंग कम्पनीज” के बोल बचन को कोट्लर कसौटी
पर कसते हैं
ज़्यादातर “ग्लैमर छाप” एडवरटाइजिंग कम्पनीज” सेलिब्रिटी इंडोर्समेंट को फ्री पब्लिसिटी से जोडती हैं, मगर ऐसा करते वक्त वो उस नेगेटिव पब्लिसिटी के बारे में भूल जाती है ट्रोल होते हुए सितारों के साथ इन ब्रांडस को फ्री में मिलती है| स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत के समर्थन में आये लोगो ने जब अक्षय कुमार को ट्रोल किया और आरोप लगाए तो उन्होंने एक ट्रोलर पर पांच सौ करोड़ रूपये का मानहानि का दावा किया| अब आप कल्पना कीजिये की इस मानहानि की वजह से उन ब्रांडस को भी तो मानहानि का सामना करना पड़ा होगा| यहाँ पर ये बात भी याद रखनी होगी की स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत का मामला उछलने के बाद बहुत सारे लोगो ने सोशल मीडिया में सेलेब्रिटी ब्रांड इंडोर्समेंट को ड्रग कार्टेल की money laundering से भी जोड़ा था| हालांकि साबित कुछ नहीं हुआ, मगर कई लोगो के दिमाग में इस तथ्य को लेकर एक negative
परसेप्शन ज़रूर जम गया|
एडवरटाइजिंग एजेंसीज और ख़ास
तौर से ब्रांड प्रमोटर्स को समझना चाहिए की Brand Perception उनके लिए सबसे बड़ा टूल है, एडवरटाइजिंग और
मार्केटिंग इस टूल को जितना कण्ट्रोल में रखेगी, उतना बेहतर होगा, सेलेब्रिटी
इंडोर्समेंट में जाते ही अक्सर ब्रांड परसेप्शन की पतवार कंपनी के हाथो से छूट
जाती है| फिलिप कोट्लर साहिब का कहा माना जाए तो consumer durable products को इस सेलेब्रिटी मकडजाल से दूर अपनी पहचान
बनानी चाहिए या फिर उन सेलिब्रिटीज को लेना चाहिए जिन्हें ब्रांड से ठीक से
एसोसिएट किया जा सके| ये बात सच है की ग्लैमर और ऑब्जेक्ट ऑफ़ डिजायर से ब्रांड को जोड़ना
एक इफेक्टिव स्ट्रेटीजी है| But there should be a method in
your madness.