महाराष्ट्र की राजनीति और बिग बॉस के घर में एक समानता है, आप चाहे जितने भी मुखौटे पहन लें, देर सबेर आपका सच सामने आकर ही रहता है| शायद यही कारण है की पिछले एक दशक में हमने महाराष्ट्र के राजनेतिक पटल पर कई चेहरों का उदभव एवं पराभव देखा|
सनसनी और चीख चिल्लाहट भरी इस
राजनीति की गली में पिछले एक दशक में हमें एक सौम्य चेहरा भी नज़र आया, जिस पर पतझड़,
सावन, वसंत और बहार का असर तो पड़ा मंगर उसने इमानदारी की खुशबू और सिद्धांतो की जड़
से नाता हमेशा जोड़े रहा| आज संजय दृष्टि में हम कृतार्थ है की इतने जन सरोकारी
सामजिक जीवन के नायक श्री राजेश शेटगे की डायरी का दो पन्ना हम आपके साथ यहाँ पढ़
रहे हैं|
24 फरवरी 2011,
समय सुबह
के सात बजे
ये दिन भी किसी और नार्मल दिन की
तरह ही था, श्री राजेश शेटगे लिखते हैं, की आज फ़ोन कुछ ज्यादा ही व्यस्त था| लोग बधाईया
दे रहे थे और में सोच रहा था की बधाई देने जैसा हुआ क्या है? जैसा में कल था वैसा
ही आज भी हूँ, हाँ लेकिन आज जिम्मेदारिया बढ़ गयी है, क्या में खुद को साबित कर
पाऊंगा? हिन्दू ह्रदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे जी ने मुझ पर जो विश्वास जताया है
क्या उस के लायक हूँ में, क्या उध्दव जी द्वारा तय गए व्यस्त कार्यकम और जिम्मेदारियों
का निर्वहन कर पाऊंगा मैं? बधाईयो का तांता बढ़ता गया और मुझे एहसास हुआ जैसे मेरा
कद बढ़ गया हो| मगर में इस नए कद का करूँगा क्या, हूँ तो में वही, सादा सा माणूस|
“वर्सोवा विधान सभा उप मंडल प्रमुख” काफी बड़ा पदनाम है ये, जो मुझे मिला
है अनिल परब साहेब की वजह से, जिनकी पारखी नज़र ने मेरे अन्दर छिपी समाज सेवा की
उत्कट भावना को पहचाना| में इस पद पर पहुंचा इसका बहुत सारा श्रेय श्री शैलेश फनसे
और नितिन रेंगे को भी जाता है जिन्होंने मुझे समाजसेवा की दुनियादारी का ककहरा
सिखाया है|
दस साल बाद...24
फरवरी 2021, समय सुबह सात बजे
आज का दिन भी किसी नार्मल दिन की तरह ही है, मगर मेरे लिए ये ख़ास है, आज
मैंने शिवसेना की वर्सोवा विधान सभा में शिवसेना द्वार प्रदत एक पद पर कार्य करते
हुए दस वर्ष पूरे किये हैं| संतुष्टि की बात ये है की इन दस वर्षो मैंने व्यक्तिगत
क्रोध और लालच को परे रख कर संगठन और लोगो के हित में निष्पक्ष फैसले लिए| शिवसेना
मंडल पदाधिकरियो का सानिध्य और श्री गजानन कीर्तिकर जी के सधे हुए मार्गदर्शन ने
मुझे इस दोधारी तलवार पर चलते हुए हमेशा सहारा दिया| में गर्व महसूस कर रहा हूँ की
मैं कभी अतिवादी नहीं हुआ और चयन प्रक्रिया के दौरान ईमानदार रहा | आज में चाहता
हूँ की अपनी इस दस साल की सामजिक जीवन यात्रा को सेलिब्रेट करूँ और उन सभी से फिर
सहयोग की उपेक्षा रखूं जो पिछले दस सालो से मेरे साथ हैं|
दो पन्ने दस साल का फासला मगर विचार वही संस्कार वही
कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है, मगर राजेश शेटगे जी की डायरी के
दो पन्ने पढने के बाद लगता है की कभी कभी परिवर्तन की कोई ज़रूरत नहीं होती है| एक पद पर
नया नया स्थापित हुआ चेहरा हो या फिर दस साल की उपलब्धियों से दमकता हुआ वज़नदार
व्यक्तित्व हो, राजेश जी की मिलनसारिता, उनके सिद्धांत, जनकल्याण के प्रति उनका
स्थायित्व और शिवसेना के साथ उनकी निष्ठा कुछ ऐसे पहलू है जो हमे एहसास दिलाते हैं
की श्री बाला साहेब ठाकरे द्वारा स्थापित इस संगठन की जड़े कितनी मज़बूत और हरी भरी
है|