जिस वक़्त आप ये कहानी पढ़ रहे हैं, उस समय बीस से ज्यादा लोग, दिन रात टी आर पी घोटाले की जांच में जुटे हुए हैं, एक केस डायरी है जो दिन-ब-दिन मोटी होती जा रही है| स्वर्गीय सुशांत सिंह से जुडी खबरों को लेकर मीडिया ने जो गिद्ध भोजन किया और किस तरह से कुछ यू-ट्यूब चेनल्स और चीखते चिल्लाते एक गणतांत्रिक चैनल ने झूठी टी आर पी की डकारे मारी है वो आपसे छिपा नहीं है| सबसे नयी खबर ये है की हाल में हुए टी आर पी घोटाले के मद्दे नज़र गठित की गयी समिति ने सिफारिश की है टी आर पी के लिए चुने जाने वाले सैंपल का साइज़ बड़ा किया जाना चाहिए|
क्या
इसे भारतीय न्यूज़ चैनल्स के इतिहास का सबसे
काला अध्याय कहा जा सकता है?
तकरीबन
पिछले चालीस दिनों से किसी भी न्यूज़ चैनल की टी आर पी रिकॉर्ड नहीं की गयी है| कम
से कम पांच ऐसे मौके भी आये हैं जब भाषा और संबोधन की मर्यादाओ के परे कल के नंबर
वन और आज के नम्बर वन चैनल ने एक दूसरे पर संगीन आरोप लगाए हैं| किसी और इंडस्ट्री
सेक्टर में हुए भ्रष्टाचार पर घंटो ताल ठोक के बहस करवाने वाले चैनल्स मीडिया पर
लगे इस आरोप पर ज्यादा ज़िक्र निकालने से बच रहे हैं| एक चैनल तो खुद को सच्चाई का
चैंपियन कहता है और दूसरे के पास तो मीडिया के इतिहास का सबसे बड़ा क्रन्तिकारी है,
मगर ये दोनों ही लोग किसी पब्लिक फोरम पर इस बारे में खुल के चर्चा करने से कतराते
हैं| ये वाकई मीडिया के इतिहास का सबसे काला अध्याय है|
टाइम्स
ऑफ़ इंडिया ग्रुप अब BARC
के खिलाफ
कार्यवाही का मन बना रहा है
टी आर पी को लेकर छिड़ा ये बैटल तो सिर्फ गहरे
पानी के ऊपर जमी बर्फ का रंग दिखाता है| इन चैनल्स में समाचार की विश्वसनीयता को
लेकर जो समझौते होते हैं, खबरे छिपाई और तोड़ी मरोड़ी जाती है, अगर इस की स्टडी की
जाये तो शायद चारो तरफ कमल ही कमल नज़र आयेगे क्यूंकि कहने वाले ये कहते है की “स्पेशल
इंटरेस्ट मेसेज” की कीचड ने बड़े मीडिया चैनल के अन्दर बसे पत्रकारों की पत्रकारिता
ही हर ली है|
हद
तो यहाँ हो गई है की टी आर पी रेटिंग देने वाली एजेंसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठ
गए हैं| टाइम्स इंडिया ग्रुप ने अब BARC
पर कार्यवाही करने का मन बना लिया है| ये स्तिथि दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए
है क्यूंकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप ने पत्रकारिता के क्षेत्र में फेयर प्रैक्टिस
के नए आदर्श स्थापित किये हैं| उन्होंने कभी भी सनसनी या झूठ का सहारा नहीं लिया
बल्कि अपने business model को मार्किट और कमर्शियल एक्टिविटी से जोड़ कर एक नए
किस्म की विज्ञापन संस्कृति को जन्म दिया| आपको याद दिला दूँ की आज भी हार्वड
यूनिवर्सिटी में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की केस स्टडी पढाई जाती है| इस केस स्टडी का हैडिंग हिंदी में कुछ इस तरह पढ़ा जा सकता है “क्या आप चला सकते हैं पांच रूपये
में पचास पन्नो का समाचार पत्र, ये अनोखा business model बनाया
है टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप ने|
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