वैसे तो इंदौर के स्वाद में वो जादू है जो किसी को महीनो तक रोक ले, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लगातार इंदौर प्रवास के क्या मायने है ? इस सवाल का जवाब पोलिटिकल पंडित एक अलग तरीके से ढूँढने का प्रयास कर रहे हैं| वैसे इंदौर में सिन्धिया जी थोड़े बदले बदले से नज़र आ रहे हैं, पहले उन्होंने अपने एक समय के विरोधी भा ज पा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ चाय की चुस्किया ली, उसके बाद ताई सुमित्रा महाजन के घर इन्दोरी पकवानों का लुत्फ़ उठाया| पोलिटिकल पंडितो का मानना है की इंदौर के स्वाद के प्रति, सिंधिया का मोह, यहाँ के पुराने कार्यकर्ताओ के मूंह का स्वाद और जमे हुए भाजपा नेताओ का हाजमा खराब कर रहा है|
सिंधिया इंदौर शहर में अच्छा खासा दखल
रखते है । यहां उनके चाहने वालो की कमी नही है । पूर्व शहर अध्यक्ष प्रमोद टंडन ,
मोहन सेंगर और हाल ही के हुए उपचुनाव
में भारी मतों से जितने वाले तुलसी सिलावट सिंधिया के समर्थक है । ऐसे में अपनी
लोकल जनाधार की हैसियत को बनाये रखने के लिए वो प्रेशर पॉलिटिक्स कर शिवराज सिंह चौहान
पर अपना दबाव बना सकते हैं । इससे पहले चम्बल में अपने प्रभुत्व की बानगी दिखा
चुके इंदौर में कोई नया गुल खिला दे तो किसी को ताज्जुब नहीं होगा|
पिछले लोकसभा चुनावो में उत्तर प्रदेश
में प्रियंका गाँधी के हाथ मज़बूत करने के यज्ञ में सिंधिया अपनी ऊँगलिया जला बैठे
थे जब लोकसभा सीट पर उनकी करारी पराजय हुई थी| सरकार गिराने के बाद उन्होंने ये भी
साबित किया की वो हार के जीतने का हुनर रखने वाले बाज़ीगर है| मगर अब चम्बल में
उनकी सरसों कटना मुश्किल होती जा रही है क्यूंकि कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर
की जड़े मोरेना और भिंड के खेतो में काफी गहरी है और नरोत्तम मिश्रा का झंडा यहाँ
की दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर शानो-शौकत से लहराता है| पिछले कुछ सालो
में एंटी-incumbancy की गर्म हवा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चम्बल की आवाज़ बना
दिया था| मगर अब ये आवाज़ नरोत्तम मिश्रा और नरेन्द्र सिंह तोमर के समर्थन में
गूंजते नारों में दब सी गयी है|
बहरहाल जो भी हो, लोक सभा के हारे,
राज्य सभा में पधारे ज्योतिरादित्य जी ने दिल्ली के बंगले में इंटीरियर का काम
कम्पलीट कर लिया है और अब शायद उनकी निगाह इंदौर के किसी महल पर है जिसका रास्ता
इंदौर के अगले मेयर पद के चुनाव से होकर जाता है|
9826306883
Betal
singh
कहीं
स्वच्छता
आन्दोलन
में
चार
साल
की
जीत
इंदौर
के
टाट
में
मखमल
के
पैबंद
की
तरह
तो
नहीं
है?