माननीय श्री कैलाश विजयवर्गीय जी ने जब पश्चिम बंगाल के किले में सेंध लगाने की शुरुआत की तो पहला हथियार उन्हें मिला Anti-Incumbency के रूप में| राजनीति शास्त्र के विशेषज्ञ Anti-Incumbency को जनता में उपजे असंतोष के रूप में परिभाषित करते हैं| इंदौर की राजनीती के परिपेक्ष्य में इसे आंकड़ो के साथ भी परिभाषित किया जा सकता है| मान लीजिये, पिछले बीस सालो हुए चार मेयर इलेक्शन में औसतन पचास प्रतिशत मतदान हुआ,बीस प्रतिशत मत हारे हुए उम्मीदवार को मिले और तीस प्रतिशत मत जीते हुए उम्मीदवार को मिले| इस स्थिति में जो बीस प्रतिशत मतदाता लगातार लोकतंत्र में अपना प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त कर पाते वो Anti-Incumbency क्रिएट करते है| ये भी देखा गया है की लगातार जीत रही पार्टी भी ओवर डेमोक्रेसी का शिकार हो जाती है और इस पार्टी से जुड़े असंतुष्ट वोटर अपना पाला बदल लेते हैं| जिसे मीडिया भीतरघात का नाम देती है| नतीजा ये होता है की जीत का तराजू challenger की और झुक जाता है| इंदौर मेयर इलेक्शन में इस बार challenger की भूमिका निभा रहे हैं संजय शुक्ला|
पिछले
बीस सालो से इंदौर में भारतीय जनता पार्टी का मेयर चुना जा रहा है| क्या यहाँ पर
एंटी इनकमबेंसी कोई असर छोड़ सकती है?
मेयर पद
के कांग्रेस प्रत्याशी श्री संजय शुक्ला की बातो से लगता है की उन्होंने चुनाव के
मैदान में उतरने से पहले इस इंदौर के मतदाताओ में बसी इनकमबेंसी को बारीकी से स्टडी
किया है| जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो, समय की कमी के कारण उन्होंने बड़ा
संक्षिप्त मगर सटीक जवाब दिया| उनके अनुसार, इंदौर को मिली नम्बर वन की पदवी दरअसल
यहाँ की जनता और नगर निगम के कुशल अधिकारियों की मेहनत और तत्परता का नतीजा है|
उन्होंने कहा की इंदौर शहर की जनता ने “Self-Discipline” का परिचय दिया और ये पदवी इंदौर को दिलवाई| साथ ही उन्होंने बी जे पी के
अनियंत्रित विकास पर भी निशाना साधा, जहाँ टैक्स-पेयर की गाढ़ी कमाई को अंधाधुंध
तरीके से कुछ ख़ास इलाको में इन्वेस्ट कर दिया गया|