एक ज्योतिषी के तौर पर पिछले बीस सालो में पांच हज़ार से ज्यादा कुंडलियो के अवलोकन करने के बाद भी मैं इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा हूँ की आखिर ज्योतिष का हमारे जीवन में रोल क्या है| आखिर विधाता ने हमसे हमारा भविष्य क्यूँ छिपाया है, अगर छिपाया है तो फिर हम भविष्य के सपने क्यूँ देखते हैं| हमारी ज्यादातर प्लानिंग भविष्य के बारे में होती है, हमारे ज़्यादातर सवाल भविष्य के बारे में होते हैं| कभी हम लाइफ इन्सुरेंस पालिसी को तकिये के नीचे रख कर चैन की नींद सोते हैं तो फिर कभी हम अपने बेंक बैलेंस का स्मरण करके अपने ब्लड प्रेशर और स्ट्रेस लेवल को काबू में कर पाते हैं| इतनी विकट परिस्थिति में ज्योतिष सामने आती है, हमें कुंडली के आईने में आने वाले कल की धुंधली तस्वीरे दिखाने| इन तस्वीरो को देखने के लिए हम अक्सर एक ज्योतिषी का सहारा लेते हैं, मगर सवाल ये पैदा होता है की आखिर ज्योतिष का सहारा कब लेना चाहिए|
पहले ज्योतिष की
सीमा को समझिये
ज्योतिष शब्द का
उद्भव है शब्द ज्योति में, अगर एक कार के उदाहरण से समझा जाए तो हम कह सकते है की
ज्योतिष उस हेडलाइट की तरह है जो मुश्किल रास्ते पर आपको बाधाये दिखा तो सकता है
मगर उन्हें कम नहीं कर सकता| अगर सड़क पर गढ्ढा है तो आप क्या करते हैं, आप अपनी गाडी
की स्पीड कम करके निकलते हैं, इस से होता ये है की आपका वक्त तो बर्बाद होता है,
मगर गाडी में होने वाली टूटफूट से आप बच जाते हैं| यही बात लागू होती है फलादेश
पर, एक ज्योतिषी आपको बता सकता है की समय खराब है भाग्य साथ नहीं देगा, इस स्थिति
में आप बड़े रिस्क लेने से बच सकते हैं| याद रखिये काम का ना होना भी एक तरह का नुक्सान
ही है, मगर कई बार एक छोटा नुकसान बड़े
नुक्सान को टाल सकता है|
मांगलिक कुंडली
का उदाहरण देखिये
कुंडली में
मांगलिक दोष होना मतलब विवाह सुख में बाधा आना| अक्सर देखा गया है की मांगलिक और
नॉन मांगलिक कुंडली के समागम से वैवाहिक जीवन में बाधा आती है, पति पत्नी में
क्लेश रहता है जिसकी वजह से दाम्पत्य जीवन और संतान सुख में कमी आती है| अब मंगल
दोष को “ज्योतिष यानी ज्योति” के आधार पर समझिये, मंगल दोष की उपस्थिति यानी
वैवाहिक सुख में विलम्ब|
आम तौर पर मैं
मंगल दोष से पीड़ित जातको को सलाह देता हूँ वो की खुद ही अपने विवाह में हो रहे
विलम्ब को स्वीकार कर लें और शादी थोड़ी देर से करें| आवश्यक बात ये भी है तीस वर्ष
के बाद ज्यादातर मंगल दोषों का परिहार स्वत: ही हो जाता है और दुष्परिणाम अपने आप
ही कम होने लगते हैं|
कुंडली में मंगल
दोष होना प्रारब्ध कर्मो का फल है, प्रारब्ध कर्म वो कर्म होते हैं जो पिछले जन्म
के संस्कारो की वजह से हमारे वर्तमान जीवन में
आते हैं| इन्हें टाला नहीं जा सकता, मगर परिस्थिति के समझौता करके इनसे
होने वाले नुकसानों को कम किया जा सकता है|