आश्रम ( Aashram),
मिर्ज़ापुर
( Mirzapur), पाताललोक ( Patallok), तांडव ( Tandav) और “सेक्रेड गेम्स ( Sacred Games) जैसी
फिल्मो को आप गौर से देखेंगे तो पायेगे की बहुत सारे किरदार अपने characters को
अंडरप्ले कर रहे हैं, मगर फिर भी हमारे दिल के करीब है| इसका बेस्ट एक्साम्प्ल है
“मिर्ज़ापुर” के कालीन भैया ( Kaleen
Bhaiya) पंकज
त्रिपाठी ( Pankaj
Tripathi) और आश्रम ( Aasharm) के साधू शर्मा ( Sadhu
Sharma) विक्रम
कोचर ( Vikram
Kochar)| दोनों
ही अपने किरदारों को निभाने में अंडरप्ले की तकनीक अपना रहे हैं, मगर इस अंडरप्ले
के बाद भी इन कलाकारो के सीन्स स्टैंड आउट होते हैं और अपनी छाप छोड़ते हैं| ये
कैसे होता है इस पर आज हम शोध कर रहे हैं|
क्या आप इन दोनों चरित्रों को Author backed चरित्र मानते हैं ?
इसका जवाब है नहीं, कालीन भैया ( Kaaleen Bhaiya) एक डरा हुआ करैक्टर है, उसके पास ताक़त तो है मगर इस ताक़त के साथ उसे खोने
का डर भी है क्यूंकि उसकी औलाद मुन्ना भैया ( Munna Bhaiya) दिव्येंदु शर्मा ( Divyendu
Sharma) एक
unpredictible करैक्टर है जो अपनी हरकतों से कालीन भैया जो अक्सर मुसीबत में डालता
रहता है| इसके आलावा कालीन भैया को निबटना होता है गुड्डू पंडित ( Guddu Pandit) अली फज़ल (Ali Fazal) जैसे characters
से जो chellenger हैं और कालीन भैया के सामने उन्हे खड़ा करने के लिए ओवर द टॉप ट्रीटमेंट दिया
जाता है| उन्हें कालीन भैया के हर नहले पर दहला मारना है| अगर आप गौर से देखेंगे
तो पाएंगे की कालीन भैया के करैक्टर के पास heroics नहीं हैं, ना ही उनके डायलॉग्स
में वो clap-traps डाले गए हैं जो अली फज़ल और मुन्ना भैया को मिलते हैं, इसके
बावजूद कालीन भैया का करैक्टर मिर्ज़ापुर में अपना असर बरक़रार रखता है|
“@तिया है ये इम्पोर्टेन्ट नहीं है, हमारा लड़का है ये इम्पोर्टेन्ट है,”
ज़रा इस डायलाग को गौर से देखिये, पंकज त्रिपाठी ने इस सीन में एक controled
agression का प्रदर्शन किया है| ये वो सीन है जहाँ एक दम से उनका करैक्टर फुल
स्विंग में आता है, और लोगो को समझ आता है की कालीन भैया आखिर कालीन भैया क्यूँ
है| सीन ज़्यादा लम्बा नहीं है, बस एक एक्सप्रेशन है, मगर ये एक्टर की
क्राफ्टमेनशिप है की वो आपको एक फेसिअल एक्सप्रेशन और चबा के बोले गए एक डायलाग
में अपना असर दिखा जाता है|
यही कहानी आश्रम के साधू शर्मा की भी है, उनके बॉस उजागर सिंह (Ujagar Singh), के हिस्से में सारे पॉवर पैक्ड डायलाग है, एक गंवई माहौल के अन्दर परिष्कृत
इंग्लिश में सिस्टम को कोसने जैसे पंक्चुएशन भी है, इसके अलावा वो रोमान्टिक सीन्स
भी उनके ही हिस्से में हैं जो 16
से 25 के दर्शको को ना सिर्फ गुदगुदाते हैं
बल्कि उनकी मॉडर्न रोमांटिक फंतासियो को हवा भी देते हैं| साधू शर्मा का तानाबाना दरअसल
उजागर सिंह के साइड किक के तौर पर बुना गया है, मगर तारीफ़ करनी पड़ेगी, विक्रम कोचर
जी की , मिनिमम डायलॉग्स होने के बाद भी उन्होंने इस करैक्टर का इम्पैक्ट ख़त्म
नहीं होने दिया और एक रिलीफ मोमेंट के तौर पर ये करैक्टर हमेशा दर्शको को
गुदगुदाता भी है|
वेब सीरीज करैक्टर को ग्रो होने का मौका देते हैं
टिपिकल बॉलीवुड फिल्म यानी एक घंटा चालीस मिनट या एक घंटा पचास मिनट की
कहानी होती है, जिसमे छोटे या साइड किरदार
के हिस्से में अमूमन दो या तीन दृश्य होते हैं, ना तो उन्हें अपने बेक स्टोरी establish
करने का मौका मिलता है, ना ही कहानी में हो रही घटनाओ का उन पर क्या असर हो रहा है
ये दर्शाने का मौका मिलता है| यही कारण है की फिल्म डेविड धवन की हो, महेश भट्ट की
हो या आदित्य चोपड़ा की आपको साइड किक के नाम पर कुछ स्टॉक करैक्टर नज़र आ जाते हैं|
डायलाग writers भी कुछ cliche डायलाग देकर उन्हें स्टोरी प्रोग्रेशन का हिस्सा बना
देते हैं| अगर आप एक एक्टर है तो फिर आपको सलाम ठोंकना चाहिए मुंबई फिल्म इंडस्ट्री
के उन करैक्टर आर्टिस्ट को, जिन्होंने इतने कम अवसर मिलने के बाद भी अपनी पहचान
बनाने में कामयाब रहे|
Web Series में कहानी एकदम अलग है, यहाँ साइड characters को तवज्जो दी जाती है,
उन्हें फुटेज मिलता है| स्टेज और रंगमच की भट्टी में तपा हुआ एक्टर यहाँ, बिना
डायलाग बोले भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है| आज जब फिल्मो से ज्यादा लोग वेब
सीरीज का हिस्सा बनना चाहते हैं उन्हें में कादर खान साहब और सुभाष घई साहब की
फिल्में देखने की सलाह दूंगा| इनकी फिल्मो आपको अनोखे चरित्र नज़र आयेंगे जिनकी बेकस्टोरी
भी आपको समझ आएगी और उनकी कहानी में यात्रा भी आप समझ पायेंगे| इस मामले में सबसे
बड़ी फिल्म है “गेंग्स ऑफ़ वासेपुर|”
रंगमंच की पृष्ठभूमि पर सजे इस मंच पर मैं दिनेश श्रीवास्तव आपका स्वागत
करता हूँ, आइये कला को स्टडी करने के लिए साथ जुड़ जाए और कला की इस अविरल यात्रा
में अपना योगदान दें|
1 Comments
Congratulations sir💐
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