शिवसेना के मुखपत्र सामना ने मुरैना जहरीली शराब कांड हादसे को उज्जैन से जोड़ कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को समझाइश दी है की जहरीली शराब का प्रचार और प्रसार रोकने के लिए ग्रास रूट लेवल पर इन फैक्ट्रीज को हटाना ज़रूरी है| हालांकि, ये समझाइश सिर्फ डेस्क रिसर्च पर आधारित है क्यूंकि मुरैना जहरीली शराब के केस में आरोपी लोगो के घरो और गोदामों में जाकर शराब की मैन्युफैक्चरिंग कर रहे थे| अपनी बातो में वज़न बढाने के लिए शिवसेना ने मुरैना हादसे को तीन महीने पहले उज्जैन में हुए ज़हरीली शराब हादसे से जोड़ा है जिसमें चौदह लोगो की मौत हुई थी|
इस आंकलन को पूरा किया है दैनिक
भास्कर ने उनकी एक रिपोर्ट में रतलाम खरगौन और दिवानिया में हुए जहरीले शराब
हादसों की कड़ी भी मुरैना ज़हरीली शराब हादसे जोड़ी गयी है| पांच हादसों को एक कड़ी
में जोड़ कर देखा जाए तो समझ आता है की आबकारी विभाग की नीतिया इस मामले में दोषी
है| पहली नीति तो price variance को लेकर है जिसकी वजह से नकली और ज़हरीली शराब की
आर्गनाइज्ड मार्केटिंग को चेहरा मिलता है|
दूसरी कमी है “चेक एंड बैलेंस “ के तरीको का अभाव|
नब्बे के दशक में मुंबई पुलिस के
सामने दो चुनोतिया थी, पहली मिलिट्री और
नेवी के कोटे में निकली हुयी सस्ती शराब जिसका दायरा साउथ मुंबई तक सिमटा था और गोवा
से आने वाली शराब| ये दोनों ही सीधे सीधे शराब smuggling के मामले थे, दोनों ही
जगहों पर कर मुक्त सस्ती शराब एक महँगी मार्किट में सप्लाई हो रही थी| शहर की घनी
बस्तियों में कच्ची शराब की भट्टिया ढूंढना दुष्कर काम था| लालपरी और ठर्रा जैसी
कई शराबे सरकार द्वारा बेचीं जा रही देसी मसालेदार शराब के मुकाबले ज्यादा बिक रही
थी|
मुंबई पुलिस रोज़ शराब की भट्टिया
तोडती थी और रोज़ नयी भट्टिया उग आती थी| समस्या का समाधान निकाला गया शराब पर
अपरोक्ष कर बढ़ा कर, जैसे की मुंबई में शराब के परमिट की बाध्यता हो गयी| शराब खरीदने
के बाद बिल लेना और घर पहुँचने तक उसे संभाल कर रखना ज़रूरी हो गया| पकडे जाने के
मामले में शराब के carrier यानी उपभोक्ता पर सारी ज़िम्मेदारी होती थी| नतीजा ये
हुआ की लोगो ने सही जगह से शराब खरीदना शुरु कर दिया| परमिट अनिवार्य होने की वजह
से मद्य निषेध विभाग का सरदर्द भी कम हुआ और भट्टियो पर बिक रही शराब में तेज़ी से
गिरावट आई|
शराब की खपत के मामले में मुंबई आज
भारत में फर्स्ट फाइव की रैंक में आता है| सरकार ने ड्रंक एंड ड्राइव problems के चलते
कुछ दिनों के लिए परमिट रूम और बार को अल सुबह तक खुले रहने की स्पेशल परमिशन दी
हुई है| जो लोग देर रात तक शराब पीना चाहते हैं वो एक लक्ज़री की तरह सरकार को कर
देकर महंगे होटल्स में इसका सेवन कर रहे है|
समय आ गया है की मध्य प्रदेश सरकार
को आबकारी नीति को फिर से revise करना चाहिए और उस प्रतिस्पर्धा की ओर भी ध्यान
देना चाहिए जो राजस्थान और उत्तर प्रदेश ने कम दामो में शराब उपलब्ध करा के पैदा
कर दी है| सामना और दैनिक भास्कर के आंकलन गलत नहीं है, मध्य प्रदेश में जहरीली
शराब से हो रही मौतों को आपस में जोड़ा जा सकता है, ये स्टैंड अलोन इवेंट्स नहीं है,
इनको जोड़ने वाली कड़ी, प्रदेश की आबकारी नीति में छिपी हुयी है|