दो साल पहले जानी मानी किचनवेयर
कंपनी के दफ्तर में Annual
Marketing Plan लेकर
अभी बस कुर्सी पर सेटल हुआ ही था तब तक owner ने बम फोड़ दिया| “ श्रीवास्तव साहब,
बिग बॉस में प्रोडक्ट लगा दिया है,” उसके बाद मैंने एक पूरी एक फाइल स्टडी की
जिसमें “ Top TRP
rating” “More then billion views,” “ Unpaid celebrity endorcement,” और “ Entry in the big advertising club” जैसे बड़े बड़े शब्द लिखे थे|
बीस दिन बाद पता चला की चालीस दिन के
उस शो में कुछ एपिसोड्स में कुछ सेकंड्स या मिनट्स की अपीयरेंस के लिए किचनवेयर
ब्रांड ने अपना पूरा सालाना बजट टेलीविज़न के चूल्हे में स्वाहा कर दिया, परफॉरमेंस
जीरो के आसपास रही और कम्पनी चार साल पीछे चली गयी|
जंगली जानवरों के बीच मोर नाचा किसने
देखा
डिस्प्ले एडवरटाइजिंग की थ्योरी में
इसे कहते हैं “Apperance
in a cluttered Arena.” जब
किसी सीरियल के अन्दर प्रोडक्ट को प्लेस किया जाता है तब दर्शको का फोकस पूरी तरह
से सीरियल के कंटेंट पर होता है, कई बार किसी प्रोडक्ट पर उनका ध्यान तक नहीं
जाता| यानी मोर तो नाचता है मगर दर्शक शेर की लड़ाई पर ज्यादा फोकस कर रहे होते
हैं|
बात अगर डिस्प्ले की हो तो ज्यादातर
कम्पनीज को “पॉइंट ऑफ़ परचेस” पर खरीदे गए merchandizing spots पर बड़ा भरोसा होता
है| FMCG में भी पायलट सेल्समेन अक्सर काउंटर
पुश पर बड़ा भरोसा जताते हैं| आम बातचीत की भाषा में इसे “मौके की दूकान” भी कहा
जाता है| फिलिप कोटलर साहब ने इसे 4P’s of Marketing के अन्दर place
का नाम दिया है| “जो दिखता है वो बिकता है” का फार्मूला इसे
प्लेस की इर्दगिर्द घूमता है| सही दुकान पर सही जगह प्रोडक्ट को उपलब्ध करवा दीजीये,
रिटेलर को उसका मार्जिन बढ़ा कर दे दीजिये, किसी बड़ी एडवरटाइजिंग एजेंसी से एड के
स्पेस खरीद लीजिये और चैन की बंसी बजाइए|
कोरोंना और ऑनलाइन रिटेल शॉप्स ने
बदल डाला सारा अल्गोरिथम
अगर आप सन 2018 में मुझसे “ जो दिखता है वो बिकता
है” फोर्मुले के बारे में पूछते तो शायद में इसे approve करता और धीमे से आपको
बताता की ऑनलाइन मार्केटिंग चैनल चालीस
प्रतिशत प्रति साल की रफ़्तार से बढ़ रहे हैं| फिर मैं आपको दबे स्वर में “मिराज
परांठा” की केस स्टडी के बारे में बताता जिन्होंने, वेबसाइट के ज़रिये प्रोसेस्ड
परांठे बेचने पर जोर दिया और अपने एड में इसे प्रमुखता भी दी|
मगर 2021 में इस सवाल का जवाब बदल गया है| तकरीबन छह महीने से ज्यादा
चले लॉकडाउन ने लोगो के कंसम्पशन पैटर्न को चेंज कर दिया है| ऑनलाइन सामान का
मार्किट बेहद तेज़ी से बढ़ा है| जिसका मुख्य कारण है सोशल distancing| आप माल्स में नहीं जा सकते, छोटे दुकानदार अब
चीज़े महँगी बेच रहे हैं क्यूंकि उन्हें loss cover करना है| इस बदलते हुए हालात में business owners को समझना
पड़ेगा की डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और हैवी इन्वेस्टमेंट करके मौके की जगह पर कब्ज़ा
जमाये हुए business पहले लड़खड़ाएंगे और फिर उनका अस्तितिव भी खत्म होगा| ठीक उसी
तरह जैसे मोबाइल के आने के बाद लैंडलाइन का अस्तित्व ख़त्म हो गया है|
“कहाँ बिकता है कौन खरीदता है” का ज़माना आ गया
अगर आप भी कोरोना के बाद के इस न्यू
नार्मल में, अपने प्रोडक्ट के लिए न्यू strategy develop करना चाहते हैं तो फ्री कंसल्टेंसी के हमे इन नंबर्स पर फ़ोन
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