खबर आई
है की पी ई बी द्वारा प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा रद्द किये जाने की वजह से
अकेले मोरेना शहर में 2500 युवा ओवरएज हो गए हैं और तकरीबन बारह हज़ार युवाओ को निराशा
हाथ लगी है जिनमें से बहुत सारे लोगो ने सालाना २०००० से ज्यादा रूपये हर साल
कोचिंग में खर्च किये हैं| मुझे यकीन है की पढाई लिखाई से नियमित रूप से दूर रहने
वाले, वेब सीरीज और सोशल मीडिया के जाल में उलझे “कटोरा कट हेयर स्टाइल” से सज्जित
युवाओ को अपनी नाकामी छिपाने का नया बहाना भी मिला होगा|
इस सब
कोलाहल के बीच, मैं कुछ अटपटे सवाल उठाना चाहता हूँ, कुछ ऐसे सवाल जो शायद आपको
मोरेना और ऐसे छोटे शहरो के शिक्षा पटल के बारे में सोचने पर विवश कर देंगे|
आखिर
कोचिंग क्लासेज में नया क्या पढाया जाता है?
जहाँ तक
मेरी जानकारी कहती है, हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की
डिग्री सरकारी जॉब और अन्य प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन के लिए पात्रता तय करती है| हर
प्रतियोगी परीक्षा के लिए तय सिलेबस में कोई भी नया टॉपिक डाला ही नहीं जा सकता|
जिस छात्र ने ये परीक्षाये पास की है, सैधांतिक तौर पर उसे किसी भी एडिशनल
क्वालिफिकेशन की ज़रूरत नहीं है| अगर कोई कोचिंग इंस्टिट्यूट इस तरह की एडिशनल
क्वालिफिकेशन देने का दावा, सरकारी जॉब या फिर एंट्रेंस एग्जाम के मद्देनज़र करता
है तो फिर ये असंवेधानिक है|
भारत का संविधान हमें मौलिक तौर पर “शिक्षा का
अधिकार, “ प्रतिस्पर्धा का अधिकार” और “ right to equal
opportunity” भी देता है| अगर,
किसी भी एग्जाम में ऐसा कुछ आता है जिसके लिए
हमें बाहर से कुछ पढना पड़े तो ये संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है| इसे
बेहतर तौर पर समझने के लिए थोडा अतीत में चलते हैं, कल्पना कीजिये की नेताजी सुभाष
चन्द्र बोस अंग्रेजो के ज़माने में आई ए एस निकालने के बाद किसी लोकल कोचिंग
इंस्टिट्यूट के पोस्टर पर उसकी बड़ाई करते नज़र आ रहे हैं| मोरेना शहर के वरिष्ठ
नागरिक, डॉक्टर्स और इंजिनियर आपको बताएँगे की उन्होंने कोर्स की किताबो के अलावा
कभी कुछ पढ़ा ही नहीं| मगर कोर्स की किताबे उन्होंने पूरी ईमानदारी और लगन से पढ़ी
और इन बड़ी डिग्रीज को सिर्फ एक हायर एजुकेशन माना और बाकी योग्यताये खुदबखुद आती
गयी|
आज
मोरेना के 2500 ओवर एज युवाओ को आई ए एस एग्जाम topper शिखा सुन्दरन की कहानी से प्रेरणा
लेनी चाहिए जिन्हें लगा था की आई ए एस की कोचिंग से ज्यादा सेल्फ स्टडी ज़रूरी है|
https://www.abplive.com/education/success-story-of-ias-topper-shikha-surendran-1531427
कोचिंग
क्लासेज या फिर झूठे सपनो की जॉय राइड
याद रखिये पारंपरिक शिक्षा एक नदी है जो आपको
जॉब की मंजिल तक पहुंचाती है| कोचिंग इंस्टिट्यूट में मिल रहा एजुकेशन आपको एक
फैंसी वाटर पार्क में लाकर खड़ा कर देता है जहाँ आप विज्ञापनों और सपनो की जॉयराइड
पर गोल गोल घूमते रहते हैं| हर साल विज्ञापन में लाखो रूपये फूंके जाते हैं|
कोचिंग इंस्टीटयूट के नाम पर “करण जोहर,कुछ कुछ होता है” की परिकल्पना पर आधारित
कैंपस बनाए जाते हैं जहाँ “ कटोरी कट, बाइकर युवा और “पू ( करीना कपूर)” के बिगड़े
हुए संस्करण पंजाबी गानों के स्टेटस और फिल्टर्ड सेल्फिस के जाल में उलझ कर जवानी
के चार दिन बिता कर ओवर एज हो जाते हैं|
हायर
एजुकेशन की पात्रता का सम्बन्ध कोचिंग क्लास की एडिशनल एजुकेशन से नहीं है
दरअसल आज
की जनरेशन में यही कमी है, हायर एजुकेशन के लिए दिया जाने वाले एग्जाम को उन्होंने
competitive एग्जाम बना लिया है| कोर्स की किताबो में शोर्ट कट लगाये जाते हैं,
कुंजिया और बीस प्रश्न ढूंढें जाते हैं, उसके बाद खानापूर्ती के अन्दर competitive
एग्जाम की कोचिंग की जाती है, एजुकेशन के महंगे होने की दुहाई दी जाती है, रोज़गार
के साधन उपलब्ध ना होने के बहाने ढूंढें जाते हैं और दुनिया का सबसे युवा देश चल
पढता है दुनिया के सबसे ज्यादा ओवर एज frustrated युवाओ का देश बनने के रास्ते पर |