हाल ही
मैं मुरादनगर में शमशान की छ्त गिरने के बाद स्थानीय नगर निगम का जो गणित सामने
आया है उसे भारत के बाकी शहरो पर कितना लागू किया जा सकता है इसका अंदाज़ा लगाने की
कोशिश करते हैं| मुराद नगर में ठेकेदार अजय त्यागी ने क़ुबूल किया की वो तीस
प्रतिशत राशि नगर निगम के अधिकारियो को रिश्वत के तौर पर देता था, यदि पूरे ठेके
के कीमत पचास लाख है तो फिर ये रकम हुयी तकरीबन पंद्रह लाख|
इसे
ठेकेदार कहें या दलाल कहें
आगे जब
मामले की तफ्तीश की गयी तो पता चला की ठेकेदार अजय त्यागी ने शमशान की छत बनाने का
काम एक और ठेकेदार को दे दिया था| तो इस हिसाब से ये भी कहा जा सकता था है अजय
त्यागी इस डील में दलाल थे| अब थोडा इमानदारी का गणित लगाते हैं| कोई ठेका पूरा
करते वक्त एक ठेकेदार को हक होता है की वो कुल राशि का पंद्रह से बीस प्रतिशत
मुनाफे के तौर पर अपने पास रखे, इस हिसाब से बचे हुए पैंतीस लाख का बीस प्रतिशत
हुआ तकरीबन आठ लाख रुपए| फाइनली जिस ठेकेदार ने ये छत बनाने के काम पूरा किया उसके
पास ईमानदारी खाते में अब भी चौबीस लाख रुपए के करीब पहुंचे| अगर उस ठेकेदार का मुनाफा
भी निकाल लिया जाए तो छत बनाने के लिए बचते हैं चौदह लाख रूपये|
अब
समझिये पब्लिक मनी के विनाश का गणित
पिछले
दिनों इंडिया के रजत शर्मा जी ने मुराद नगर मामले में यू पी के सी एम योगी
आदित्यनाथ जी प्रशंसा करते हुए कहा की “माना नगर निगम मैं भ्रष्टाचार है मगर योगी
जी की विकास की नीयत बुरी नहीं है क्यूंकि उन्होंने शमशान के लिए पचास लाख रूपये
जो सेंक्शन किये हैं”| इस पचास लाख रूपये की राशि बजट ब्रेकडाउन देख कर किसी भी
टैक्स पेयर का सर चकरा सकता है| ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना है की शमशान की इस
छत को बनाने के लिए आठ से दस लाख रूपये काफी थे| अब इस छत के लिए पचास लाख रूपये
क्यूँ सेंक्शन हुए, इस प्लानिंग का जवाब तो आपको उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा चुने
गए योगी जी के सिपहसालारो से पूछना पड़ेगा|
कहानी की
सीख बड़ी सीधी साधी है अगली बार जब निकाय चुनाव के दौरान कोई प्रत्याशी आपके द्वार
पर विकास का परचा फेंके तो उस से ये पूछना मत भूलियेगा की भैया, इस पर्चे का
ब्रेकडाउन समझा दो, कितना पैसा कहाँ खर्च करोगे कैसे खर्च करोगे|