किसान आन्दोलन में कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर की लगातार नाकामयाबी को देख कर कई राजनीतिक पंडितो को स्वतंत्र भारत के “आर्थिक लोह पुरुष” स्वर्गीय अरुण जेटली जी की बरबस याद आ जाती है| ज़रा सोचिये जी एस टी जैसा जटिल क़ानून बिना किसी होहल्ले के टेबल पर कब सेट हुआ और कब अमल में आ गया पता ही नहीं चला| मगर कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर श्री अरुण जेटली की तरह वाक्पटुता और डिप्लोमेसी के साथ किसानो से संवाद नहीं कर पाए| नतीजा सामने है, सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिखित आश्वासन के लिए शुरू हुआ किसान आन्दोलन सुरसा के मूंह की तरह बड़ा होता जा रहा है|
वोटो के
मामले में माइनॉरिटी में हैं तो आन्दोलन के मामले में मेजोरिटी का दावा क्यूँ ?
कांग्रेस
और वाम दल अगर ये कहते हैं की किसान मोदी जी की नीतियों को outrigtly
reject कर रहे हैं तो
फिर ये भी एक गलत स्टेटमेंट है| हमने देखा है किस तरह नोटबंदी की नाकामयाबी के बाद
भी सरकार पहले से भी बेहतर बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है| मोदी जी ने हर बार हर
मंच से कृषि सुधारो के बारे में ज़िक्र किया है और आम जनता और किसानो को वोट देते
वक्त पूरा अंदाज़ा था की इस तरह का कोई क़ानून आ सकता है| जिस वक्त अरुण जेटली जी एस
टी को लेकर व्यापारिक संगठनों के सामने थे तब सरकार पर नोटबंदी की नाकामयाबी का
बोझ भी लदा था| मगर जब नरेंद्र सिंह तोमर किसानो के सामने आये तब तीन सौ सत्तर और
जी एस टी में मिली कामयाबी ने लोगो में विश्वास का माहोल बना दिया था| इतने अच्छे
हालात होने के बाद भी कृषि मंत्री की लगातार नाकामी कृषि क़ानून के प्रेजेंटेशन पर
कई सवालिया निशान लगाती है|
कमी
क़ानून में नही शायद मोदी जी के प्रतिनिधियो में हैं
आज से
बीस साल बाद जब कोई स्टूडेंट मॉडर्न भारत का
आर्थिक इतिहास पढ़ेगा तो उसमें श्री नरेंद्र मोदी और स्वर्गीय अरुण जेटली जी
का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित होगा| उस अध्याय का नाम होगा “कर व्यवस्था का
सरलीकरण|” पिछले तीन साल के आंकड़े बताते है की लोगो को ये व्यवस्था रास आने लगी
है| मैं आपको वापस लिए चलता हूँ उस डेढ़ साल के वक्फे में जब जी एस टी लागू हुआ था|
ज़रा कल्पना कीजिए, आज सिर्फ साडे चार सौ किसान संगठन विरोध मैं हैं, उस समय ये
संख्या लाखो में थी| अगर आप गौर फरमाएंगे तो पायेंगे की भोपाल और इंदौर जैसे टू
टियर शहरो में आपको दर्जनों “ स्वर्णकार संगठन” या फिर “बार्बर एसोसिएशन” मिल
जायेगे| जी एस टी का क़ानून “कील से लेकर हवाई जहाज़” हर चीज़ पर लागू होना था|
ऐसे समय
में काम आई, स्वर्गीय अरुण जेटली जी चुम्बकीय पर्सनालिटी, ये जेटली साहब का ही
बूता था की भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था से जुड़े हर सेक्टर के लोगो से वो लगातार टच
मैं रहे, उनके कलेक्टिव बार्गेन को पूरी इज्ज़त दी और एक ऐसा समाधान भी ढूंढ निकाला जो सब को पसंद आया | वर्तमान समय में
भारत सरकार के प्रतिनिधि, कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर में उस चुम्बकत्व
की कमी नज़र आती है जो स्वर्गीय जेटली साहब में था|
कृषि कानूनों का परोक्ष रूप से भारत के चौबीस
पच्चीस करोड़ किसानो से लेना देना है| इनका प्रतिनिधित्व सिर्फ चार सौ या पांच सौ
संगठन कर रहे हैं, जी एस टी का सीधा सीधा लेन देन एक अरब की जनता के साथ था और
उनका प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन तो हर गली कूचे मैं थे| मगर यहाँ काम आई अरुण
जेटली जी की लीडरशिप क्वालिटी| बजाय नेतागिरी झाड़ने के उन्होंने हर इंडस्ट्रियल
सेक्टर में कुछ ऐसे लीडर पैदा किये जिन्होंने जनता और वित्त मंत्रालय के बीच
सुगम्य संवाद सेतु बनाया, नतीजा हमारे सामने है|
मोदी जी के विज़न में, देश के लिए उनके कमिटमेंट
में जनता को पूरा भरोसा है, ये भरोसा कायम रहे इसके लिए ज़रूरी है की वो अपने
प्रतिनिधि के तौर पर अरुण जी जैसे सारगर्भित और चुम्बकीय व्यक्तित्व को आगे करे जो
उनकी बात कह सके|
जिस वक्त
में ये शब्द लिख रहा हूँ उस समय मोदी जी का थिंक टैंक कृषि क़ानून की वर्तमान
नाकामी के बारे में बारीकी से अध्ययन कर रहा है, मुझे यकीन है की उन्हें भी इस
वक्त मेरी तरह ही श्री अरुण जेटली जी की कमी महसस
हो रही होगी|
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