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क्या अपने खिलाफ मीडिया ट्रायल चलवा कर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की गरिमा बढ़ा पायेंगे अर्नब| |

इसको संजोग कहे
या किस्मत का लेखा, उद्धव की मुंबई से सौ किलोमीटर दूर, पुलिस के सवालों से घिरे
अर्नब गोस्वामी वही खेती काट रहे हैं जो पिछले कुछ नब्बे दिनों में उन्होंने बोई
थी| अंग्रेजी साहित्य के विशेषज्ञ इस घटना को पोएटिक जस्टिस का नाम देने से भी
नहीं हिचकेंगे| अब ये पोएटिक जस्टिस कैसे हुई है, इसे समझने के लिए हमें तीन महीने
से आज के दिन तक की टाइमलाइन पर नज़र डालनी पड़ेगी, और कुछ घटनाओ को दो साल पहले हुए
आत्महत्या के मामले से भी जोड़ना पड़ेगा| इस के बाद शायद हम समझ पायेंगे की कार्मिक
थ्योरी क्या है और ऊपरवाले के दरबार में किस तरह आपके कर्म वापस लौट कर आते हैं|
पिछले नब्बे
दिनों में रिपब्लिक टी वी की टी आर पी ( पता नहीं असली है या नकली)| तब टॉप पर
पहुंची थी जब याद करिए, स्वर्गीय श्री सुशांत
सिंह राजपूत के केस को आत्महत्या माना जा रहा था और बांद्रा पुलिस चौकी में एक के
बाद एक फिल्म जगत से जुड़े लोग पहुँच रहे थे| “Bollywood का काबाल, “हाथ में कॉफ़ी
पकडे सफेदपोश” ना जाने कैसे कैसे विशेषण अरनब जी के श्रीमुख से फूट रहे थे| रिपब्लिक
टी वी के रिपोर्टर स्वर्गीय सुशांत सिंह केस से जुड़े लोगो के स्टिंग ऑपरेशन कर रहे
थे, यू tube पर जग्गा जासूसों की बहार आई हुई थी| स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत के
शव का पोस्ट मार्टम तो एक बार हुआ होगा, मगर उनकी आखिरी तस्वीरो का हजारो बार
पोस्टमार्टम हुआ| अर्नब ने जी पूरी शिद्दत से हर पोस्ट मार्टम से निकली थ्योरी को
अपने चैनल पर जगह दी| चलिए, इस साहसी पत्रकारिता के लिए उन्हें बधाई देते हैं|
जैसे भी सही किसी ने एक अलग बात को कहा तो सही|
उसके बाद बारी
आई हाथरस काण्ड की, यहाँ पर अर्नब जी और उनकी टीम, इस कांड के सबसे साक्ष्य यानी dying डिक्लेरेशन को दरकिनार कर के कांग्रेस
के खिलाफ एक नया एजेंडा चलाने में जुट गए| एक वक़्त तो ऐसा लगने लगा था जैसे एक
राजनेतिक दल ने हाथरस को आग में झोंकने का मन बना लिया है| मीडिया ट्रायल हुआ,
पोलिटिकल ड्रामा हुआ और पीड़ित परिवार की आवाज़ दब कर रह गई, उनके परिवारीजन उन्हें
ढांढस बंधाने तक के लिए नहीं आ पाए| रिपब्लिक
टी वी ने लगातार हाथरस काण्ड पर रिपोर्टिंग कम की, मगर ऐसा लगा की उनका इरादा सत्य
को परखने का कम और तथाकथित राजनेतिक अजेंडे को आगे बढ़ाने का था| जैसा की होता रहा
है, लोग वो घटना भूल गए और अर्नब भी वो घटना भूल गए|
ज्योतिष की
किताबो में सही लिखा है, कर्म वापस लौट कर आते हैं, आज अर्नब जी जिस मामलें
में तलब किये गए हैं, उस पर ये दोनों बाते
लागू होती है| मतलब अर्नब पर इल्जाम है की उन्होंने एक व्यक्ति को उसके मेहनताना
समय पर ना देकर आत्महत्या के लिए उकसाया है और इस बात का सबूत है सुसाइड नोट, जिसे
dying देडिक्लेरेशन भी माना जाता है| हाथरस काण्ड में जोशीली सनसनी और प्यार ( पी
आर) भरी पत्रकारिता करते समय अर्नब भूल गये की dying डिक्लेरेशन को माननीय सुप्रीम
कोर्ट ने बयान और साक्ष्य दोनों का दर्ज़ा दिया है| आज अर्नब एक ऐसे मामले में फंसे
हैं जहाँ dying डिक्लेरेशन उनके ठीक उसी तरह खिलाफ है जैसे की हाथरस काण्ड में आरोपी
बनाये गए लोगो के खिलाफ था| आज उन पर वही abetment to suicide का चार्ज भी है, जिसके लिए चिल्ला चिल्ला कर पिछले
नब्बे दिनों में उनका गला बैठ गया और टी वी दर्शको के कान फट गए|
क्या आज कंगना
रानावत एक आम आदमी के साथ हुए “abetment
to suicide” के मामले पर कोई बयान देना पसंद करेगी| खैर कंगना तो अब bollywood की
रिजेक्टेड इनसाइडर हैं, रायगड में मरे किसी व्यक्ति से उनका क्या वास्ता| अब सवाल
ये है की क्या अर्नब गोस्वामी अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए स्वर्गीय आर्किटेक्ट
अन्वय के साथ अपनी व्हाटस एप चाट खुद रिलीज़ करेंगे? क्या वो खुद आगे बढ़ कर अपने
बैंक स्टेटमेंट का वो हिस्सा जारी करेगे जहाँ उन्होंने स्वर्गीय अन्वय को पैसे
दिये थे? रिपब्लिक
टी वी का माइक हाथ में लेकर एन सी बी, ई डी और सी बी आई के दफ्तरों के सामने
डुगडुगी बजा कर मजमा लगाते रिपोर्टर क्या अब अपने बॉस अर्नब गोस्वामी से सवाल पूछ
पायेगे? क्या वो पूछ पायेंगे की आखिर ऐसा क्या था जिसकी वजह से एक आदमी ने जान
देने से पहले अर्नब का नाम अपने सुसाइड नोट में लिखा? सबसे ज़रूरी सवाल क्या अर्नब
गोस्वामी अपने खुद के खिलाफ उसी गर्मी के साथ मीडिया ट्रायल कर पायेंगे जैसे वो
औरों के साथ करते हैं|
आखिर क्यूँ
रिपब्लिक टी वी के रिपोर्टर रायगड के अन्वय और उनकी माँ को इन्साफ दिलाने की बात
नहीं कर रहे हैं| आखिर क्यूँ, रायगड आत्महत्या मामले की कवरेज सिर्फ अर्नब की
पिटाई और उनकी गिरफ़्तारी तक सिमट कर रह गयी है| आखिर उन्हें ये इम्युनिटी क्यूँ दी
जा रही है| पिछले चार महीने से अर्नब मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के
बीच हुए एक तथाकथित नेक्सस की बात कर रहे हैं| वो बार बार साबित करने के कोशिश कर
रहे हैं की स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत के केस में कवर अप किया गया है| आज जब
अर्नब कहते हैं की अन्वय केस दो साल पहले ये केस बंद हो चुका है तो फिर हम इसे एक
कवर अप की तरह क्यूँ ना देखे| दिलचस्प बात ये है की उस समय महाराष्ट्र में भाजपा
की सत्ता थी| आज भी बी जे पी मुखर होकर अर्नब की गिरफ़्तारी का विरोध कर रही है| इन
तथ्यों को सामने लाकर हम यहाँ किसी प्रोपोगंडा की शुरुआत नहीं करना चाहते, मगर साथ
ही हम ये ज़रूर दिखाना चाहते हैं की अर्नब गोस्वामी और रायगड आत्महत्या की दाल में
कुछ काला ज़रूर है| अर्नब का गिरफ्तार होना
और उनका जमानत ना मिलना, यकीनन ये साबित करते हैं की कहीं कोई reasonable suspicion
ज़रूर है जिसे कोर्ट नकार नहीं पा रहे हैं| हम आशा करते हैं की रिपब्लिक टी वी अपनी
साख कायम रखेगा और अर्नब का असली सच(चाहे वो जितना भी काला हो), दर्शको के सामने
ज़रूर लाएगा और इस बार मीडिया ट्रायल भी
दर्शको के हाथ होगा|